




श्रीडूंगरगढ़ लाइव…13 फ़रवरी 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।
गुणों के भण्डार थे महाराजा डूंगरसिंह
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महाराजा श्रीडूंगरसिंह का जन्म सन 1854 को हुआ। जब उनका राज्याभिषेक हुआ, उस समय वे मात्र अठारह वर्ष के थे। महाराजा सरदारसिंह की मृत्यु के बाद एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत दो दावेदारों में से डूंगरसिंह को महाराजा बनाया जाना उचित समझा गया। महाराजा सरदारसिंह छह विवाहों के बावजूद निस्संतान थे। उनकी एक रानी भटियाणी ने छतरगढ के अधिपति लालसिंह के पुत्र डूंगरसिंह को गोद ले रखा था। दूसरी रानी ने मुकुंदसिंह के पुत्र जसवंतसिंह को भी गोद ले रखा था। राज्य में उस समय बड़े अधिकारी पंडित मनफूल ने अंग्रेज सरकार पर जोर देकर डूंगर सिंह को राज्य का उतराधिकारी बनाया। जबकि दोनों उतराधिकारी पूर्व में एक ही वंश के रहे हैं।
श्रीडूंगरगढ़ नाम से एकमात्र शहर बसाने वाले डूंगर सिंह सुयोग्य शासक थे। सुन्दर देहयष्टि और बलशाली डूंगर सिंह ने अपने विद्रोहियों को बुद्धि बल से काबू किया तथा प्रथमबार अपने राज्य में भू पैमाइश का कार्य कर बहुत अधिक जमीन दबानेवाले सामंतों से भूमि को मुक्त करवाया।सामंतों की मनमानी पर अंकुश लगाया। राज्य की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया। बहुत सारे भव्य निर्माण किए। तीर्थ स्थलों पर निर्माण करवाकर अपने धार्मिक स्वभाव को प्रकट किया। इन कर्तव्य परायण महाराजा में ढेरों गुण थे।
महाराजा डूंगरसिंह ने मात्र पन्द्रह वर्ष तक राज्य किया पर बीकानेर राज्य के वे पन्द्रह वर्ष अनमोल कहे जा सकते हैं। अपने पिता के नाम पर शिवबाड़ी में लालेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना की। असाध्य बीमारी के कारण महाराजा डूंगरसिंह की सन 1887 में मृत्यु हो गई। उन्हें अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था।










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