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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…12 फ़रवरी 2023 ।प्रिय पाठकां,
श्रीडूंगरगढ़ रा मानीजेड़ा अर लोकलाडला साहित्यकार “सत्यदीपजी” आपणै सागै रोजीनां मारवाड़ी में बतावळ करसी।

 

धर्म री कल्पना किंया..?? 

जीवन है तो जीवणो तो है ही, जिंया -तिंया करनै जूण पूरी तो करणी ही पड़ै। कोई जरूरत कठै लखावै धरम नै धारणै री। धरम री, जूण बिताणै सारु कठै जरूरत लखावै। जिया जतो जा ही सकै है। नास्तिक बोलै, “धरम रो सायरो तो कमजोरी रो लखण हुवै। पण साच तो आ है, कै धरम एक भींत हुवै, एक सींव हुवै अर एक समझावणै री जुगत हुवै। अर एक संदेसो हुवै , एक संकेत भी हुवै। आपां नै जीवणो है, ना कै खाली जूण पूरी करणी है। जीणै सारु थोड़ी मरजाद हुवै अर थोड़ी बरजनावां रो आंकस भी हुवै। मरजाद अर बरजणा छेक जीणो तो पसु होवणो हु़वै। पसुता छोडणो ही तो मिनख बणनो हुवै है। पसुता नै छलक जीवणो ही तो मिनखपणो कथीजै। संदेश भी है कि जिमेवारी अर सुसंगत री धारणा परोटणो ही तो हुवै है धरम।
आ ताकत तो धरम में ही हुवै, जको
संकेतां रै समचै परकत रै साथै परकत सूं लेयनै परकत नै सावचेती साथै बरतै। अनुसासन में बंध सरीर पर साधन राखै। परकत नै भोगै पण दूहै कोनी। आपणै रिसी -मुनियां री परकत री खोळ्यां में खेलणै री सांवठी जूनी सीख ही आपणां संसकार हुया, संसकारां सूं ही परंपरा अर परंपरा बगती बगती रूढता बणगी। य ऐ सगळी बगत अर साधनां रै साथै जुड़ी। जुग जचती जरूरतां मुजब संसकारां में सुधार आपणै जीवणै नै जीणै रो साधन बणायो। सुधरणो अर सुधारणो ही तो धरम हुवै है। धरम कोई खास भेस, दिखावो अर बखाण देवणो सुणनो को हुवै नीं।ओ तो साच रो सरुप हुवै। ओ तो जीवणै नै सुधारणो अर सूल्यां परोटणो हुवै। धरम ही सिखावै, कै संसकार में ढळनै नवाचार अपनावां, नूंवै निर्माण नै सिरजां अर खैनास नै पसवाड़ै फैंकणो सीखां। निरमाण री भावभोम रो रचाव हरमेस सतसंग अर स्वाध्याय हुवै। अब धरम री लीकां ही सिखावै, कै कठै अर किंया बेठ्यां साची सीख मिलै अर जीणो सारथक बणै। जिसी संगत हुवै, बिसो ही मन बणै अर जिसो मन बणै बिसा ही फळ मिलै। अब धरम सधावै कै बण्यां कल्याण हुवै। जद भी संतां-सज्जनां साथै बैठां तर ही आपणी गती अर नीयती रो भाव रचीजै। जीव बो ही बणज्या जिसी संगत हुवै। मन री आ जुगत हुवै, कै बो स्सोरो अर हाथो -हाथ सुख देणियों मारा ही तकावै चावै पछै पूरो जमारो ही क्यूं नीं बिगड़ै। आपांनै कठै बेठणो है, क्यूं बेठणो है, किंया बेठणो है अर कै धारणा धारणी है। निरमल भाव री रिछपाळ किंया हो सकै है। आ बात जिणसूं सीखां बो ही तो हुवै है धरम। धरम ही आपांनै सिखावै समभाव, निरलिप्तता अर सूंवी दीठ रो मारग। धरम ही सिखावै कै अवळो आज
सबळो भविस बणाणै रो अर मुगती साधणै रो तत। सुख अर दुख नै समान भाव सूं साधणै री जुगत भी धरम सिखावै। धरम आचरण नै खुद अर लोक रै हित रो ग्यान देवै। संयम री भाव खेती नै धरम री इमरत छांटां ही पोखै। साधक नै साधु आ बात इण बिगत सूं समझाणै री कोसिस इण भांत करी है –
सुखमापतितं सेव्यं दुखमापतितं तथा।
चक्रवात परिवर्तंते दुखानि च सुखानि च।।
समभाव ने किसी भी परिस्थिति में धारित करणै रो संबंल धर्म ही प्रदान कर सकै है ओर दूजो कोई नीं।

ऊँ आनंद

 

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