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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…2 फ़रवरी 2023 ।प्रिय पाठकां,
श्रीडूंगरगढ़ रा मानीजेड़ा अर लोकलाडला साहित्यकार “सत्यदीपजी” आपणै सागै रोजीनां मारवाड़ी में बतावळ करसी।

 

 

——दुख तो मुठ्ठी भर हुवै—-

संसार में दुख है, कै सुख। इणरो मापीणो जितो दोरो हुवै बितो ही स्सोरो भी हुवै। आ बात आपणै ही हाथ में हुवै। जद तक जी संकळपां-विकळपां में गूंथीज्योड़ो रेवै। मोह-माया सूं खुदनै रूध्यो राखै। बो कदै आपरै भीतर साधना नै धारण को कर सकै नीं।
जैन आगम रै उतराध्ययन में बतयो है, कै ‘समयाए समणो होई’
यानि चंचळता नै पसवाड़ो देयनै समता नै साधै।
एक संत खनै एक भोत दुखियारो आयो। बुरी तरियां कळपै हो। महाराज म्हैं इण जगत रो सगळा सूं दुखी जीव हूं। म्हारो कोई निस्तारो को हुवै नीं। का तो थै कोई उपाव बतावो, का मरणै रो मारग बतावो। साधु बस मुळक्यो, सांयती सूं आपरै नेड़ै बेठाय उणनै धिरोज बंधायो। बोल्या पेली आ परसाद लै। खायां पछै एक गिलास में पाणी ल्या अर एक बाटकी लूण ल्या। परसादी खायनै बो दोवूं चीजां लेयनै सन्यासी कनै आयो। सन्यासी उणनै बूझ्यो बता लाडी परसाद हो, आछो ही लाग्यो। परसाद कद माड़ो हुवै। गुरूजी पछै उणनै केयो, कै इण पाणी रै गिलास में ओ लूण सावळ रळा अर गटागट पीज्या। बो मिनख बात मान पाणी में लूण घोळ पीवणो चायो, पण गिटीजणो इतो दोरो, कै गटागट तो कै गुटको-गुटको गिटणो ही को झल्यो नीं बो अधबीच छोड गुरूजी कनै आय केयो, कै को मार पड़ै नीं ओ गिटणो।अब गुरूजी बितो ही लूण लेय बीं मिनख नै नदी किनारै लेग्या अर बोल्या। इण लूण नै जठै आछो लागै बीं जाग्यां घोळ ले। बो बिंया ही कर्यो। बोल्या अब जठै घोळ्यो बठै रा गुटका लै। आदमी गटागट गुटका ले लिया। गुरूजी बूझ्यो, क्यूं खरास लाग्यो। बो बोल्यो ना सा नदी रो पाणी तो साव मीठो है। तद गुरूजी समझायो, लाडी दुख रो खरास जद तांई लखावै जद तांई आपां आपणो मन रो बरतण छोटो राखां। नदी सो ठाडो मन राख, खरास दर ही को लखावै नीं। जको संसार में मिलै बो भगवान रो परसाद मान सिकारसी तो दुख तो बस मुठ्ठी मान ही हुवै। बाकी हरि माथै छोडणै में ही भलाई हुवै
सत्यदीप।

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