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भारत के इस गांव को कहा जाता है ‘विधवाओं का गांव’, क्‍यों हो जाती है पुरुषों की जल्‍दी मौत

श्रीडूंगरगढ़ लाइव 07 अगस्त 2023। देश में एक ऐसा गांव भी है, जहां के ज्‍यादातर पुरुषों की मौत हो चुकी है और महिलाएं विधवा का जीवन जी रही हैं। जानते हैं कि आखिर इस गांव में ऐसा क्‍या है कि यहां के पुरुषों की असमय मौत हो जाती है और विधवा महिलाओं के सामने जीवनयापन का संकट खड़ा हो जाता है…

भारत में अपनी संस्‍कृति, खानपान, लोक संगीत और पहनावे को लेकर खास पहचान रखने वाले राजस्‍थान का एक गांव ऐसा भी है, जहां के ज्‍यादातर पुरुषों की मृत्‍यु हो चुकी है। इसलिए इस गांव को विधवाओं का गांव भी कहा जाता है। हालात इतने खराब हैं कि विधवा महिलाओं को परिवार का पालन पोषण करने के लिए खुद मेहनत मजदूरी करनी पड़ती है। इस गांव की ज्‍यादातर महिलाएं जीवनयापन के लिए दिन में 10-10 घंटे बलुआ पत्‍थर को तोड़ने और तराशने का काम करती हैं।

राजस्‍थान के बूंदी जिले के बुधपुरा गांव की विधवा महिलाओं की संघर्षभरी जिंदगी के बीच ये सवाल भी उठता है कि यहां के पुरुषों की असमय मौत क्‍यों हो जाती है..? इस सवाल का जवाब किसी शोध या अध्‍ययन का मोहताज नहीं है। ज्‍यादातर लोग इस गांव के पुरुषों की असमय मौत की वजह जानते हैं। कई रिपोर्ट्स में बताया जा चुका है कि यहां के पुरुषों की मौतों का बड़ा कारण बुधपुरा की खदानें हैं। दरअसल, इन खदानों में काम करने के कारण पुरुषों को सिलिकोसिस नाम की घातक बीमारी हो गई। समय पर सही इलाज नहीं मिलने के कारण ज्‍यादातर पुरुषों की मौत हो गई।

खदानों में ही काम करने को मजबूर विधवाएं
चौंकाने वाली बात ये है कि यहां की सभी महिलाएं अपने पतियों की मौत का कारण जानने के बाद भी बच्‍चों को पालने के लिए उन्‍हीं खदानों में काम करने को मजबूर हैं, जिनसे यहां के पुरुषों को जानलेवा बीमारी सिलिकोसिस मिली। राजस्‍थान के बुधपुरा में बलुआ पत्‍थरों को तराशने का काम काफी बड़े पैमाने पर किया जाता रहा है। इन पत्‍थरों को तराशने के दौरान निकलने वाली सिलिका डस्‍ट कामगारों के फेफड़ों में चली जाती है। इससे फेफड़ों में संक्रमण हो जाता है। अब अगर समय पर इस संक्रमण का पता चल जाए और इलाज हो जाए तो कामगारों की जान बच सकती है, लेकिन ज्‍यादातर मामलों में कामगारों को बहुत देर से इसका पता चल पाता है।

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