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लीगल एडवाइज : घरेलू हिंसा में महिलाओं के अधिकार

श्रीडूंगरगढ़ लाइव…13 मई 2023।श्रीडूंगरगढ़ लाइव सटीक खबरों के साथ सामाजिक, ऐतिहासिक, स्वास्थ्यपरक कॉलम भी पाठकों के लिए प्रतिदिन प्रकाशित करता है। अब अपने पाठकों के लिए श्रीडूंगरगढ़ लाइव पोर्टल लेकर आया है “लीगल एडवाइज” यानि विधिक सलाह। युवा एडवोकेट सोहन नाथ सिद्ध आपको बताएंगे आपके अधिकारों के बारे में और आपको मिलेगी कानूनी सलाह।

महिलाएं हमारे समाज में आज भी अक्सर भेदभाव का शिकार होती हैं उन्हें घरों के भीतर ही शारीरिक और मानसिक हिंसा झेलनी पड़ती है।

महिलाओं को इस तरह के अत्याचारों से बचाने और इंसाफ दिलाने के लिए दहेज कानून (498 ए) और घरेलू हिंसा निरोधक कानून बनाए गए हैं हालांकि कई बार 498 ए के बेजा इस्तेमाल के मामले भी सामने आते हैं।

दहेज के लिए पति या ससुराल पक्ष के किसी दूसरे शख्स के उत्पीड़न से महिला को बचाने के लिए 1986 में आईपीसी में सेक्शन 498-ए (दहेज कानून) शामिल किया गया जो अगर महिला को दहेज के लिए शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या भावनात्मक रूप से परेशान किया जाता है तो वह दहेज कानून के तहत केस दर्ज करा सकती है दहेज के लिए तंग करने के साथ-साथ क्रूरता और भरोसा तोड़ने को भी इसमें शामिल किया गया है यह गंभीर और गैरजमानती अपराध है।

सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक दिल्ली लीगल सर्विस अथॉरिटी, राष्ट्रीय महिला आयोग, एनजीओ आदि की डेस्क क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल में हैं साथ ही विमिन सेल के पुलिस अधिकारियों खासकर महिला अधिकारियों को पूरी दिलचस्पी और धीरज के साथ पीड़िता की बात सुननी चाहिए ताकि वह खुलकर अपनी बात कह सके।

शिकायत मिलने के बाद केस दर्ज करने से पहले पुलिस लड़के वालों को बुला लेती है। लेकिन अगर पति समझौता नहीं चाहता, न ही बातचीत करना चाहता है तो सीडब्ल्यूसी उसे हाजिर होने का प्रेशर नहीं डाल सकता अगर दोनों पक्ष राजी हैं तो सीडब्ल्यूसी उनके बीच समझौता कराने की कोशिश करता है जिन मामलों में लड़की या उसके घरवालों की इच्छा अलग होने की नहीं होती वहां पुलिस की मध्यस्थता से काम हो जाता है अगर मामला सुलझता नहीं है तो पति और उसके परिजनों के खिलाफ केस दर्ज किया जाता है।

दहेज कानून जहां महिलाओं को सपोर्ट करता है, वहीं इसके गलत इस्तेमाल के भी मामले आए दिन सुनाई देते हैं कई बार पति-पत्नी के बीच छोटे-मोटे झगड़े और आपसी ईगो की वजह से पत्नियां 498 ए के तहत मामला दर्ज कराने की ठान लेती हैं और ससुराल पक्ष के ज्यादातर लोगों का नाम रिपोर्ट में लिखवा देती हैं

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि अगर किसी मामले में पति, उसके परिवार वालों और रिश्तेदार निचली अदालत में पेश किए जाएं तो अदालत उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा कर दे इसके बाद मामला मीडिएशन सेंटर में भेज दिया जाए क्योंकि पति-पत्नी के छोटे-मोटे झगड़े अदालत की दहलीज पर पहुंचकर नासूर बन जाते हैं सरकार 498 ए में संशोधन लाने की कोशिश कर रही है, ताकि किसी को झूठे मामलों में न फंसाया जा सके।

परन्तु देखा गया है कि इन कानूनों का गलत इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है, ताकि पति अथवा अन्य लोगों को समझौते के लिए मजबूर किया जा सके।

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