





श्रीडूंगरगढ़ लाइव…09 फरव 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।
लखासर के भैरव थे–भाई
सैकड़ों वर्षों से लखासर भैरव मंदिर चर्चित रहा है ।बीकानेर के महाराजा जब वार चढते ( युद्ध के लिए जाते) उससे पूर्व भैरव के दर्शन करने अवश्य आते ।बीकानेर संभाग में अनेक भैरव मंदिर प्रसिद्ध है, किन्तु “भाई ” भैरव के रूप में केवल लखासर भैरव को ही ख्याति प्राप्त हुई । लखासर में भैरव की स्थापना एक स्त्री ने अपने भाई के रूप में की ।
लखासर के जागीरदार सांवतसिंह तंवर का विवाह लगभग चार सौ वर्ष पूर्व सियाणा में हुआ । सांवतसिंह की विवाहिता के कोई भाई नहीं था, ससुराल रवाना होते समय वह उदास हो गई, वह किसे भाई बनाकर ससुराल ले जाए? असमंजस की घङियों में विचार कौंधा- क्यों न जिसकी नित्य प्रति पूजा की जाती है, उसे ही भाई बनाकर ससुराल ले जाने का आग्रह किया जाए । ठकुरानी ने अपने इष्ट को भाई बनाकर साथ चलने का आग्रह किया, अपनी भक्त के अनुरोध को भैरवजी कैसे टालते ? भैरव एक ओर सृष्टि के संहारक हैं, तो दूसरी ओर कोतवाल के रूप में जगत के रक्षक हैं ।
भक्त प्रतिपालक लखासर भैरव के चबूतरे की स्थापना ठकुरानी ने अपने हाथों से की । लोक में प्रचलित है कि उन्होंने भाई सदृश ही जीवन पर्यंत उनकी सहायता की ।
चार सौ वर्षो के काल में मंदिर के स्वरूप में कई परिवर्तन हुए । महाराजा गंगासिंह जी ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कर भव्य रूप प्रदान किया । करणीमाता और लखासर भैरव में उनकी गहन आस्था थी । बीकानेर राज्य के संस्थापक राव बीका ने जब नए राज्य की खोज में प्रस्थान किया तब भैरव प्रतिमा उनके साथ थी । तब से बीकानेर राज्य में भैरव मंदिरों की स्थापना हुई । बीकानेर शहर की चारों दिशाओं के रक्षक चार भैरव हैं ।
लखासर में ठकुरानी द्वारा स्थापित मूर्ति प्राचीन चबूतरे पर आज भी विराजित है, जबकि मंदिर के जीर्णोद्धार कर्ताओं ने निज मंदिर में संगमरमर की प्रतिमा लगाई है, किन्तु प्रथम पूजन चबूतरे का होता है ।
मंदिर की अपनी ओरण है ।यहां महाराजा गंगासिंह जी द्वारा निर्मित कोठी है । लखासर भैरव अपनी सौम्य शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है । महाराजा करणीसिंहजी के सान्निध्य में सन 1985 में मंदिर का फिर जीर्णोद्धार हुआ । उस कार्यक्रम का संचालन इस चेतन स्वामी ने किया था । करणीसिंहजी ने मंदिर के विकास और विस्तार की योजना बनाई थी, पर उनकी मृत्यु के कारण योजना को थोङा विराम लग गया । बाद में लखासर भैरव मंदिर का प्रवेश द्वार बना । उसमें अनेक दानदाताओं का योगदान रहा ।










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